दमोह। जिले के पेषवा कालीन प्राचीन सिनेमा रोड स्थित श्रीराम मंदिर में श्रीराम नवमी का पर्व उत्साहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर शहनाई वादन कर बाल षिषु प्रभु श्रीराम की सूचना दी गई। आकाशवाणी कलाकार
बलिराम पटैल और पटैल बन्धुओं ने भय प्रगट कृपाला दीनदयाला कौषल्या हितकारी भजन और कीर्तन का सुंदर गायन श्री हनुमान मंदिर परिसर और शमी के वृक्ष के
नीचे सुसज्जित श्री नंदा मंच पर किया। चैत्र नवमी पर पेषवा कालीन मराठा परंपरा में श्रीराम मंदिर में किसी नवविवाहित जोड़े को दषरथ और कौषल्या बनाकर षिषु राम का जन्मोत्सव धूमधाम एवं वैदिक पद्धति से मनाया गया। पंडित अभिषेक शेवड़े के मार्गदर्षन में गंजबासौदा के मानस-दषरथ और अवनि-माँ कौषल्या का रूप धारण किया। पारंपरिक रूप से बालगीत गायन कर दोपहर शंखनाद के बीच षिषु प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ। पारंपरिक शहनाई वादन के साथ षिषु को प्राचीन झूले में बाहर लाकर भक्तगण को दर्षन लाभ कराया गया। षिषु जन्म के उपलक्ष्य में गंजबासौदा के लुखे और विदिषा के
ओखदे परिवार द्वारा 21 ब्राह्मणों की पारंपरिक बसंत पूजा की गई। नवविवाहित जोड़े ने दषरथ-कौषल्या के रूप में षिषु प्रभु श्रीराम का पूजन किया। सामूहिक प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसके पूर्व चैत्र नवरात्र में श्रीराम दरबार में नौ दिन नौ झाँकियों की विषिष्ट परंपरा है। सारे भारतवर्ष में इस प्राचीन देवस्थान को अपनी अनूठी धार्मिक और गतिमान परंपरा के लिये जाना जाता है। आज भी दमोह के प्रतिष्ठित सोनवलकर परिवार के वंशजों की दसवीं पीढ़ी ने बखूबी इस परंपरा का निर्वहन कर धार्मिक क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है। चैत्र नवरात्र की शुरूआत वर्ष प्रतिपदा को पारंपरिक प्रातःकालीन झंडा वंदन (गुड़ी) से की जाती है। प्रथम दिवस श्रीराम दरबार में राज दरबार, द्वितीय दिवस अष्वारूढ़, तृतीय दिवस गजारूढ़ झाँकियाँ बनाई गई। पंचमी को श्रीजी भगवान षिव और माँ सीता
पार्वती का रूप धारण किया गया, छठवें दिन श्री हरि विष्णु और माँ लक्ष्मी की झाँकी बनाई गई, सप्तम दिवस श्रीराम दरबार कृष्ण-राधा स्वरूप में परिणित हो गया। अष्टमी को प्रभु श्रीराम स्त्री रूप में माँ जगतजननी देवी अष्टभुजा स्वरूप में प्रकट हुये। महामंगला आरती में दो महिलाओं को देवी के भाव आ गये और देर रात्रि तक पं. अभिषेक शेवड़े, पं. सत्यम शर्मा, अमृता देवी, गौरव, वैभव, अभिनव, अभय और अबीर की जोड़ी ने जगराता में भजनों का गायन किया। देर रात्रि माँ की पारंपरिक नजर उतारकर झाँकी का समापन किया गया।