द्वार दया को जब तू खोले पंचम स्वर में गूंगा बोले ! अँधा देखे, लंगड़ा चलकर पहुंचे काशी रे

  • Apr 12, 2023
  • Pushpanjali Today

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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 6 अप्रैल से 12 अप्रैल  तक दोपहर 1 बजे से सायं 4 चार बजे तक छविराम पैलेस, गणेशपुरा चौराहा, बडागांव हाईवे, मुरार, ग्वालियर में 'श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ' का भव्य आयोजन किया जा रहा है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी साध्वी मेरुदेवा भारती जी ने सप्तम दिवस में भगवान् श्री कृष्ण जी व रुकमणी जी के विवाह प्रसंग को भक्तों के समक्ष रखते हुए कहा कि यहाँ भगवान् श्री कृष्ण साक्षात् परमात्मा हैं और रुकमणी जी एक आत्मा का प्रतीक हैं जो भगवान् की प्राप्ति करना चाहती हैं परन्तु उनका मिलन तभी संभव हो पाया था जब एक पंडित जी उनके जीवन में आये l ठीक इसी प्रकार एक आत्मा का लक्ष्य भी परमात्मा है और जब तक एक जीवात्मा परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर लेती तब तक वह आवागमन के बंधन से मुक्त नहीं हो पाती है परन्तु हमारे संतों महापुरुषों ने कहा कि जिस प्रकार श्री रुकमणी जी का विवाह तभी संभव हो पाया था जब पंडित जी  उनके और भगवान् श्री कृष्ण जी के बीच माध्यम बने थे l  ठीक इसी प्रकार एक पूर्ण गुरु के माध्यम से ही आत्मा और परमात्मा का मिलान संभव हो पता है और पूर्ण गुरु की कसौटी बताते हुए हमारे संतों ने कहा कि जो ईश्वर का दर्शन हमें इस मानव तन के भीतर ही करा दें वही पूर्ण सतगुरु हैं और यही नहीं भगवान् शिव भी गुरु गीता में पूर्ण गुरु की कसौटी बताते हुए कहते हैं कि पार्वती इस संसार में बहुत सारे गुरु हैं l १. सूचक गुरु  २. वाचक गुरु ३. बोधक गुरु ४. निषिद्ध गुरु ५. विहित गुरु ६. कारणाख्य गुरु और अंत में सप्तम गुरु हैं परम गुरु l  अर्थात कुछ गुरु पंचाक्षरी मंत्र व वशीकरण मन्त्रों को देने वाले होते हैं l  कुछ शिक्षा व उपदेश देने वाले होते हैं परन्तु उनकी शरण जाकर भी एक जीवात्मा का कल्याण नहीं हो  पाता है जब तक कि एक जीवात्मा पूर्ण गुरु की शरण को प्राप्त नहीं करती l  इसलिए संतों ने कहा कि एक पूर्ण गुरु के द्वारा ही ईश्वर के आलौकिक रूप का दर्शन कर पातें हैं उनके प्रकाश रूप का देख पाते हैं और ईश्वरीय संगीत का अपने भीतर सुन पाते हैं और शाश्वत अमृत को अपने ही भीतर प्राप्त करने की युक्ति को भी जान पाते हैं तभी कहा -

                          द्वार दया को जब तू खोले पंचम स्वर में गूंगा बोले

                          अँधा देखे, लंगड़ा चलकर पहुंचे काशी रे

अर्थात पूर्ण गुरु की कृपा के द्वारा ही एक नेत्रहीन व्यक्ति भी ईश्वर का दर्शन कर पाता है l गूंगा व्यक्ति भी उस शाश्वत नाम को जब पाता है जो जिह्वा से अति परे है और आगे कहा कि एक लंगड़ा व्यक्ति जो अपाहिज है वह भी काशी पहुँच जाता है क्योंकि वास्तव में काशी एक अवस्था है जो पूर्ण गुरु के द्वारा ही प्राप्त हो पाती है l   श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से आज अनेकों ही जीवात्माएं सहज ही उस ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर ईश्वर का दर्शन अपने भीतर कर पाएं हैं और शास्वत ज्ञान को प्राप्त कर ईश्वर से मिलन कर सच्चे आनंद की प्राप्ति कर पायी हैं यही भगवान् श्री कृष्ण जी व श्री रुकमणी जी के विवाह प्रसंग का आध्यात्मिक सार है l  इसलिए आवश्यकता है कि आज हम भी एक पूर्ण सतगुरु की शरण में जा ईश्वर का साक्षात्कार कर अपनी आत्मा को मनोरथ को पूर्ण करें  तभी हमारा कल्याण होगा l कथा का समापन हवन व भंडारे द्वारा किया गया l

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