मुंगावली-पुण्य का मतलब अच्छा कार्य करना है बुरे कार्य का नाम पाप है जो आत्मा को पवित्र करें वह पुण्य है ,पाप और पूण्य दो प्रकार के कर्म है प्रारंभ में व्यक्ति का पाप का रास्ता छुड़ाया जाता है और उसे पुण्य की ओर अग्रसर किया जाता है,उक्त उद्गार आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री प्रभात सागर जी महाराज ने नगर के पुराना बाजार स्थित श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा आगे उन्होंने आगे कहा कि मंदिर जाना पुण्य के प्रारंभ की स्थिति है पाप से छुड़ाकर शुभ योग शुभ परिणामों के निमित्त से पूण्य का और अशुभ योग अशुभ परिणामों के निवेश से पाप का आश्रव होता है हम प्रतिदिन घर का कार्य करते है उसमे भी आप पुण्य और पाप का संचय कर सकते है घर में अगर हम झाड़ू लगाते है तो हमें देख कर लगाना चाहिए जिससे जीव हिंसा न हो हम घर के छोटे छोटे कार्यों में भी पुण्य का संचय कर सकते हैं हिंसा करना,चोरी करना,झूठ,कुशील सेवन सब अशुभ कर्म का योग है क्योंकि यह शरीर से करने वाले कर्म हैं और आप वाणी से भी पाप बंध करते हैं असत्य,कठोर बोलना,मन से भी अशुभ मनोयोग्य के कार्य करते है मन में ईर्ष्या का भाव रखना,मारने का विचार करना,गाली देना तीनों से मन,बचन, कार्य से हम पाप अर्जन करते है और हम मन में विशुद्धि ले आए तो पुण्य का अर्जन कर सकते हैं धर्म सभा की शुरुआत आचार्य भगवन के चित्र अनावरण व दीप प्रज्ज्वलन से हुईं। मुंगावली में निर्यापक मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ससंघ विराजमान है मुनि संग में मुनि श्री प्रभात सागर जी महाराज,मुनि श्री निरीह सागर जी महाराज छुलक उद्यम सागर जी महाराज, छुलक श्री गरिस्ट सागर जी महाराज विराजमान है।