छठ पूजा एक त्योहार नहीं, संस्कार है- माधुरी शाही*

  • Oct 29, 2022
  • Arimardan Singh Bhadoriya Reporter

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*छठ पूजा एक त्योहार नहीं, संस्कार है- माधुरी शाही* 


 *छठ पूजा हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा त्योहार है जो हमें समानता और एकता का संदेश देता है. ये एक त्योहार नहीं, हमारा संस्कार है -अनिल शाही* 


पुष्पांजली टुडे 

(गोपालगंज,भोरे): चार दिवसीय लोक आस्था के महापर्व छठ के दूसरे दिन यानी शनिवार को खरना पूजा की जा रही है। छठ व्रती महिलाएं अपने घरों में खरना पूजा में जुटी हुई हैं। महिलाओं ने खरना पूजा में खीर और पूड़ी बनायी है। देर शाम खरना की पूजा पूरे विधि - विधान से होगी। जिसके बाद रविवार को छठ व्रत के तीसरे दिन सांध्य कालीन सूर्य की उपासना की जाएगी। फिर चौथे दिन उदीयमान सूर्य की पूजा के साथ छठ पूजा संपन्न होगी। झारखंड व अन्य जिलों के घरों में भी छठ व्रती पूजा कर रही हैं और खरना का प्रसाद बना रही हैं.

छठ व्रती महिलाएं इस दौरान छठ मैया के लोकगीत भी गा रही हैं. खरना प्रसाद बना रहीं माधुरी शाही पति अनिल कुमार शाही ने बताया कि सुबह से ही खरना पूजा की तैयारी कर ली गई है। पहले खीर और फिर पूड़ी बनाई जाएगी. बाद में देर शाम को खरना की पूजा करेंगी. उन्होंने कहा कि इस बार छठ पर्व पर परिवार की सलामती के साथ-साथ निरोग रहने के साथ संक्रमण व अन्य बीमारियों के खात्मे की भी कामना कर रही हैं. वहीं छठ कर रही माधुरी शाही ने कहा कि पिछले दो वर्षों से कोरोना का प्रकोप ज्यादा होने से उत्साह में कमी आया था और पूजा को भी सीमित रूप में किया गया था. लेकिन अब कोरोना का खात्मा हो चुका है तो इसके पूरी तरह से खत्म होने के लिए वो अपने परिवार के साथ-साथ समाज की भलाई की भी कामना करेंगी।


 छठ महापर्व के दूसरे दिन बनता है खरना का प्रसाद


बता दें कि छठ महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को नदी और तालाब में खड़े होकर फल और कंद मूल से प्रथम अर्घ्य अर्पित करते हैं. फिर छठ के चौथे और अंतिम दिन नदियों और तालाबों में व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देते हैं. दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के बाद ही श्रद्धालुओं का 36 घंटे का निराहार व्रत समाप्त होता है और वो अन्न-जल ग्रहण करते हैं।

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Nil Kumar

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आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका

राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक

कमल राठौर साहिल शिवपुर मध्य प्रदेश

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आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका,स्वरचित मौलिक