ग्वालियर। सूरी नगर ,मुरार में गत दिवस आयोजित एक काव्यगोष्ठी मुजफ्फरपुर बिहार से पधारे डॉ रणजीत सिंह पटेल के सम्मान में संपन्न हुई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार मुरारी लाल गुप्त "गीतेश" ने की। मुख्य अतिथि के रूप डॉ. रणजीत पटेल मुजफ्फरपुर,बिहार रहे। संचालन वरिष्ठ गीतकार राजेश शर्मा ने किया एवं संयोजन नवगीतकार बृजेश चंद्र श्रीवास्तव का रहा।
कार्यक्रम में शहर के अनेक गीतकार एवं कवियों ने सहभागिता की।
प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलन किया गया।
सरस्वती वंदना जगदीश महामना ने प्रस्तुत की। तत्पश्चात् अतिथियों का स्वागत किया गया एवं कार्यक्रम में काव्य पाठ प्रारम्भ हुआ। जिसमें कवि रामचरण" रुचिर" की प्रस्तुति इस प्रकार रही।
" धर्म नीति की राह न भटके वही सहज व्यवहारी है। सरल सहज सम्राट जीवन ही होता पर हितकारी है।"
जगदीश महामना ने अपनी प्रस्तुति देते हुए पढ़ा, "कांच कंचन हुआ मन वृन्दावन हुआ , पांव पायल हुई वावरी वावरी।"
अगले क्रम में वरिष्ठ गीतकार सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा ने अपनी गीत रचना में कहा " ओ बारिश की बूंदो, जा सको तो उसे घर जाना। सपनीली मस्त बयार हो सके वह सावन लाना।"
क्रम को आगे बढ़ाते हुए राम अवतार "रास "ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा,"दूर बहुत आकाश हुआ था, सपनों ने भी नहीं छुआ था।
तितली तक तो पकड़ न पाए चीलों की बातें करते हैं।"
अगले क्रम में डॉक्टर किंकर पाल सिंह जादौन का गीत इस प्रकार रहा,
"मौन भरे अवसर अनबन के आए चले गए, खुशियों के सहचर बन आए, पीड़ा भरे रहे।"
इसी क्रम में विजयपुर से पधारे मांगीलाल "मरमिट" ने भ्रूण हत्या पर रचना प्रस्तुत करते हुए कहा ,
"विषय वासना क्या मन मस्त मस्तानी रे, जो जाया जननी जगती की ऐसी करूण कहानी रे।"
वरिष्ठ गीतकार घनशाम भारती ने अपनी प्रस्तुति देते हुए पढ़ा " पानी बरसा एक गुण उमस बढ़ गई पांच। ऐसे दिल चुभने लगे जैसे टूटा कांच।।"
इसी क्रम में अनंगपाल सिंह भदोरिया अनंग ने अपना काव्यपाठ करते हुए कहा, " इस चमड़ी की करी हिफाजत हमने जीवन भर, रहा बदलता रूप उम्र भर रोक नहीं पाए।"
इसी क्रम में ललित मोहन त्रिवेदी ने सुंदर गीत की बानगी इस प्रकार रही ।
" छू गई सांस एक पांखुरी। प्राण मन डम डमाने लगे।
नैन में जब से तुम आ बसे, स्वप्न भी झिलमिलाने लगे।"
क्षकार्यक्रम का संचालन कर रहे मधुर गीतकार राजेश शर्मा ने अपनी प्रस्तुति इस प्रकार दी।
" बादल तुम हो प्राण सदी के, उतरो सारे मोह तोड़कर अपनी आसंदी के।"
खूब सराहा गया ।
कार्यक्रम का संयोजन कर रहे नवगीतकार बृजेश चंद्र श्रीवास्तव ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा,
"आ जाओ सावन बादल पानी और फुहार।.. .. आ जाओ चंदन खुशबू शीतल मन्द बयार।"
मुख्य अतिथि डॉ . रंजीत पटेल ने ग्वालियर की काव्य परंपरा की बहुत ही सराहना की।
अपनी काव्य प्रस्तुति इस प्रकार दी'"
"रहा नहीं अनुराग धरा से, बदल गया तू बादल। पावस की रवि किरणें ऐसे भिगा रहीं तन मन को।"
कार्यक्रम में अध्यक्षता कर रहे मुरारी लाल गुप्त "गीतेश" ने अपनी रचना प्रस्तुति देते हुए कहा,
"मैं अनिश्चित आज पथ पर लो बढ़ा ही जा रहा हूं, हैं भरे शोले जिगर में गीत फिर भी गा रहा हूं।"
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि का सम्मान बृजेश चन्द्र श्रीवास्तव ने शॉल, श्रीफल पुष्पहार आदि से किया।
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन राम अवतार "रास" ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम बहुत ही उत्कृष्ट एवं अविस्मरणीय रहा।