1611 ई. में मुगल सेनापति अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ की राजधानी चावंड को जीत लिया, जिससे महाराणा अमरसिंह बड़े दुःखी हुए। महाराणा अमरसिंह ने दरबार में कहा कि "अगर उदयपुर के भव्य महल हमारे हाथ से निकल जावे, तब भी हमें इतना दुःख नहीं होता, जितना चावण्ड के जाने से

  • Aug 31, 2023
  • Nenaram Sirvi Bureau Chief Pali Raj.

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1611 ई. में मुगल सेनापति अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ की राजधानी चावंड को जीत लिया, जिससे महाराणा अमरसिंह बड़े दुःखी हुए। महाराणा अमरसिंह ने दरबार में कहा कि "अगर उदयपुर के भव्य महल हमारे हाथ से निकल जावे, तब भी हमें इतना दुःख नहीं होता, जितना चावण्ड के जाने से है। यदि अब भी अब्दुल्ला खां को जवाब ना दिया, तो बड़ी अपकीर्ति होगी।"


तभी दरबार में बैठे महाराणा अमरसिंह के वीर पुत्र कुँवर भीमसिंह खड़े हुए और बोले कि "अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं अब्दुल्ला खां से लड़ने जाऊं। आपको मेरा वचन है कि लड़ते-लड़ते अब्दुल्ला खां की ड्योढ़ी तक न चला जाऊँ, तो जीवनभर आपको अपना मुंह नहीं दिखलाऊंगा।"


कुँवर भीमसिंह 2 हज़ार घुड़सवारों सहित रवाना हुए। अब्दुल्ला खां को कुँवर भीमसिंह की इस प्रतिज्ञा के बारे में पता चला, तो उसने बहुत सी फौज ड्योढ़ी पर तैनात कर दी। जगह-जगह शाही सिपहसालारों और सैनिकों को तैनात कर दिया और सभी को सतर्क रहने का हुक्म दिया। वह खुद भी हर तरफ निगरानी रखे हुए था।


कुँवर भीमसिंह अब्दुल्ला खां के डेरों के सामने पहुंच गए और लड़ाई शुरू होने में पल भर का वक्त भी नहीं लगा। मेवाड़ी राजपूत मुगलों पर टूट पड़े। अब्दुल्ला खां की फ़ौज मेवाड़ी फ़ौज की तुलना में 5 गुना अधिक थी, फिर भी मुगल सेना के पांव उखड़ते जा रहे थे।


कुँवर भीमसिंह घोड़े पर सवार थे। जो उनके सामने आता वह उनकी तलवार के वेग के सामने नहीं टिक पाता और यमलोक की तरफ प्रस्थान करता। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो आज कुँवर भीमसिंह किसी के रोके नहीं रुकने वाले थे।


आख़िरकार लड़ते-लड़ते लहूलुहान होकर कुँवर भीमसिंह अब्दुल्ला खां की ड्योढ़ी तक पहुंच गए, लेकिन इससे आगे ना बढ़ सके। कुँवर भीम के 2 गहरे घाव लगे और उनके घोड़े का एक पैर कट गया, जिसके बाद कुँवर दूसरे घोड़े पर चढ़ गए।


ये भीषण लड़ाई बराबरी पर जाकर ख़त्म हुई, पर अब्दुल्ला खां को काफ़ी फ़ौजी नुकसान उठाना पड़ा। मेवाड़ के राजपूतों ने इस लड़ाई में जो शौर्य दिखाया, वो अतुलनीय था। इस लड़ाई में अब्दुल्ला खां के बहुत से सैनिकों समेत 60 नामी सर्दार मारे गए। मेवाड़ की तरफ से भी सैंकड़ों वीरों समेत 25 खास योद्धा काम आए।


कुँवर भीमसिंह नाहरमगरे में महाराणा अमरसिंह के सामने हाजिर हुए, जहां महाराणा अपने बेटे की इस वीरता से बड़े खुश हुए। इस लड़ाई के 4 महीने बाद तक अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ पर कोई हमला नहीं किया।


पोस्ट लेखक :- Naresh Kumar sirvi 

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Nil Kumar

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आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका

राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक

कमल राठौर साहिल शिवपुर मध्य प्रदेश

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