ईगो,अहंकार,अहम् सभी का मतलब सामान अर्थात पर्यायवाची है लेकिन बोलने में अलग अलग है जहाँ पर भी रहेगा पर परिणाम एक ही निकलता है बर्बादी अथवा विनाश सुनिश्चित है यह कभी भी और किसी भी समय पनप सकता है जिस किसी के जीवन में ईगो,अहंकार,अहम् है वह व्यक्ति कभी भी सुखी जीवन नहीं जी सकता, भारत के अंदर आज के समय में ईगो,अहंकार,अहम् बहुत तेजी से पनप रहा है जरा जरा सी बात पर बाद विवाद होना तो एक आम चलन सा बन गया है यही कारण है की देश के अंदर हत्याएं बढ़ती जा रही है परिवारों के बीच खुशहाली तो बिल्कुल खत्म ही होती जा रही है एक दूसरे को बढ़ता हुआ भी देखना न गुजार लगता है यही वो कारण है की गरीबी बढ़ती जा रही है
करना क्या चाहिए तो हम जापान से बहुत कुछ सीख सकते है जापान में दो गाड़ियों के एक्सीडेंट (टकराने) से कभी भी कोई झगड़ता नहीं है बल्कि एक दूसरे से सॉरी बोलकर आगे बढ़ते है जबकि भारत के अंदर झगड़ा शरू करने लगते है और किसी न किसी को जनहानि जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है इसलिए क्षमा और सॉरी कहना सीख ले यदि जीवन को स्वर्ग जैसा बनाना चाहते हो तो वरना आपकी जिंदगी आपके हाँथ में है
जैन समाज के अंदर क्षमा याचना का एक रिवाज है यह कोई नया रिवाज नहीं है लेकिन हम लोग अपने पुराने रिवाजो को भूलकर हॉलीवुड कल्चर को अपनाते जा रहे है जिसमे मारधाड़ के अलावा और कुछ भी नहीं है
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात। बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात् अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए।
समाजसेवी अरुणेश सिंह भदौरिया
राष्ट्रीय अध्यक्ष जनशक्ति वेलफरे सोसाइटी मध्यप्रदेश