मानव जीवन पर आधारित कविता

  • Jan 01, 2023
  • Nenaram Sirvi Bureau Chief Pali Raj.

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तूं पुरुष है 

हां तू पुरुष है,  है ना, तू पुरुष है, मानलो , कि पुरुष है तूं।

गतिमानकाल ने ये पत्थर लकीर खींची, कि पुरुष है  तूं।।

तू डर नहीं सकता, तू रो नहीं सकता।।

कि तू पुरुष है, मायूस नहीं हो सकता।।

कि तू पुरुष है, आंसू नहीं निकाल सकता।।

पत्थरीली आंखों से भाप निकाल है सकता।।

न कि तू नयनों से निकाल सकता है आंसू।

तू तो हिमालय की बर्फ में रहने वाला, है भालू।।

हां तू पुरुष है, डर भी अगर लगे तो।।

तो क्या ? कह नहीं सकता किसी से।।

आंसुओं के घूंट पीना है तुझे, निकाल नहीं सकता।।

तो, तो क्या? नेत्रों में मोतियों को चमका है सकता।।

दु:ख से दु:खी हो सकता है कह नहीं सकता।

तूं पुरुष है, रो नहीं सकता, मालूम है ना।।

तूं पत्थर है, तूं लोहा है, तूं लोहे की दीवार की कील है ना।।

तू ही तो दु:खों का कठोर पठार है, तू पुरुष है।

हां तू सताया जा सकता है, पर कह नहीं सकता।।

क्योंकि तूं पुरुष है, मालूम है ना, तूं पुरुष है।।

अकेले खूब रो सकते हो, किसी से कह नहीं सकते हो।

क्यों?, क्यों क्या? मालूम है ना, तूं पुरुष है।।

तू कोहलू का बैल है, रात दिन कर्म किए जा।।

तूं कर्मी है, आदेश नहीं, कर्मी कर्म किए जा।।

मना नहीं कर सकते हो, क्यों? , क्यों क्या?, तूं कर्मी है।।

तूं तो पुरुष है ना, फिर कर्मी बन, तूं तो कर्म का मर्मी है।।

हां तू पुरुष है, अत: अनेकानेक कर्मपद प्राप्त होंगे।।

मना, ना, क्योंकि तूं तो पुरुष है ना, मालूम है ना।।

तू वार-त्योंहार पर पूजे जाओगे।

कभी कभी तो सम्मान खूब पाओगे।।

भूल न जाना, तूं परमेश्वर नहीं, तूं तो पुरुष है।

पापकर्मी और कोई हो, पर दोषी तूं पुरुष है।।

न कि तूं परमेश्वर है , है ना, तूं तो पुरुष है।।

तूं सर्वशक्तिमान है, तूं तो पत्थर से भी सशक्त है।

मालूम है ना, तूं पुरुष है, कि तूं पुरुष है, कर्मी है।।

       राम लाल सैनी वरिष्ठ अध्यापक संस्कृत 

शहीद बद्री सिंह राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय करीरी, शाहपुरा, जयपुर राजस्थान

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