दमोह। ग्राम बरखेरा बैस मे कोमल सिंह के निवास पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस में कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री महाराज ने कहा कि धन्ना भगत के प्रेम के आगे भगवान को भी झुकना पढ़ा था धन्ना जाट की कथा आज इतनी मसहूर है की सभी भक्त इनको नमस्कार करते है। जिन्होंने श्री भगवान को प्रेम पूर्वक धरती पर उतारा जिसमे धना के प्रेम के आगे भगवान को झुकना पड़ा और धना के हाथ से रोटी खानी पड़ी थी धन्ना जाट के पिता साधु सेवी सरल हृदय वाले किसान थे पढ़े लिखे तो नहीं थे परंतु वे श्रद्धालु थे उनके घर इधर उधर जाते हुए साधु संत आकर एक-दो दिन रह जाते थे धन्ना जी की उस समय आयु 5 वर्ष थी उस समय एक साधु उनके घर आया उस साधु ने कुएं से जल निकालकर स्नान किया और अपनी झोली में से शालग्राम जी को निकालकर उनकी पूजा तुलसी चंदन धूप दीप आदि से की। बालक साधु को ध्यान से देख रहा था। उन्होंने साधु से कहा कि महाराज जी मुझे भी यह मूर्ति दो मैं भी इसकी पूजा करूंगा साधु ने उसे बहुत समझाया परंतु बालक ने हठ करके उस मूर्ति को मांगा परंतु साधु ने उसे काले पत्थर का एक टुकड़ा पकड़ा दिया। और कहा कि लो बेटा यही तुम्हारा भगवान है और तुम आज से इसकी पूजा करो बालक ने खुशी से उस काले पत्थर के टुकड़े को पकड़ और अपना भगवान मानकर उसकी पूजा करने लगा सवेरे स्नान करके अपने भगवान को चंदन तिलक करता परंतु उसके पास चंदन नहीं होता तो वह मिट्टी का तिलक करता वृक्ष के हरे हरे पत्तों को चढ़ाता क्योंकि उसके पास तुलसी के पत्ते नहीं थे फूल चढ़ाता और कुछ तिनके जलाकर धूप कर देता और हाथ जोड़कर दंडवत प्रणाम करता और प्रेम से बैठ जाता दोपहर में बालक की मां ने बाजरे की रोटी खाने को दी धन्ना भगत ने वे रोटियां भगवान के आगे रखकर आंख बंद कर ली। बीच-बीच में ही आंख खोलकर वह देखता रहा कि भगवान रोटी खाते हैं या नहीं परंतु जब भगवान ने रोटी नहीं खाई तब इन्होंने हाथ जोड़कर बहुत प्रार्थना की इस पर भी भगवान को भोग लगाते ना देखकर उसे बहुत दुख हुआ उसके मन में यह विचार आया कि भगवान उसे नाराज हो चुके हैं वह मेरी चढाई हुई रोटी नही खाते भगवान भूखे रहें और मैं रोटी खा लूं यह नहीं हो सकता ऐसा सोच कर धन्ना ने रोटियां गाय को दे दी धन्ना को इसी प्रकार कई दिन हो गए ठाकुर जी नहीं खाते और धन्ना उपवास करते हैं। दिन प्रतिदिन शरीर दुबला होता जा रहा है माता पिता को कुछ पता ही नहीं कि उसके लड़के को क्या हुआ है धन्ना को सिर्फ एक ही बात का दुख था कि उसके भगवान नाराज है वे उसकी दी हुई रोटी नहीं खाते इसी प्रकार धन्ना जाट को अपनी भूख का पता ही नहीं कुछ दिन बाद जब धना ने रोटियां रखी तो भगवान प्रकट हो गए और वे भोग लगाने लगे जब भगवान ने आधी रोटी खा ली तब धन्ना ने ठाकुर जी का हाथ पकड़ लिया और कहां कि तुम इतने दिन क्यों नहीं आए मुझे भूखा मारा और आज आए हो तो अकेले ही रोटी खा रहे हो मुझे थोड़ी सी भी रोटी नहीं दी बची हुई रोटी को भगवान ने धन्ना को दे दी प्रेम के भूखे भगवान को धन्ना की रोटियों का स्वाद लग गया। अब वे नियमित रूप से धन्ना की रोटियों का नित्य भोग लगाने लगे इसी तरह से धना जाट भगत बना क्योंकि जिसको भगवान वासुदेव के दर्शन हो जाये वो साधारण मनुष्य केसे रह सकता है भगवान ने तो अपने भगतो के मान बढ़ाने के लिए अपना आधा नाम ही भक्तो को दे दिया आप देखिये भगवान और भगत में पहले दो नामो की समानता है। धन्ना धुआंन गांव में एक जाट परिवार में पैदा हुए और आगे चलकर धन्ना जाट कहलाये धन्ना रामानंद के शिष्य थे जिन्होंने रामानंद की ही भांति भगवान को प्राप्त किया था।