झरगांव तेतलपारा में धूमधाम से मनाया गया वट सावित्री का पर्व, पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनों ने रखा निर्जला व्रत

  • May 19, 2023
  • Lekhraj Chakradhari Gariyaband

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संवाददाता हेमचंद नागेश कि रिपोर्ट


गरियाबंद- जिला मैनपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत झरगांव तेतलपारा में शुक्रवार को वट सावित्री व्रत धूमधाम से मनाया गया। हिन्दू धर्मावलंबी महिलाओं ने व्रत रखकर सुहाग के कल्याण एवं रक्षा की कामना की। व्रत को लेकर प्रात: से ही महिलाओं का हुजूम शहर के विभिन्न बरगद पेड़ के नीचे दिखने लगा था वैदिक मंत्रोच्चार के बीच महिलाओं ने पंचोपचार विधि से वट वृक्ष का पूजन किया एवं वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर परिक्रमा की। लाल-पीली साडिय़ों में सजी महिलाओं ने बताया कि वे इस पर्व को लेकर आज व्रत धारण करेंगी। उन्होंने पूजन के उपरांत सदा-सुहागिन रहने की मनौती मांगी है।

वट सावित्री की पूजा, पति की दीर्घायु व संतान प्राप्ति के लिए की गई पूजा अर्चना- 

सुहागिनों ने इस व्रत के संदर्भ मे  जनपद पंचायत सदस्य श्रीमती लक्ष्मी बाई पटेल ने बताया कि पुरातनकाल में सती सावित्री ने इस व्रत को किया था तथा सदा-सुहागन रहने की मंगलकामना की थी। व्रत के परिणामस्वरूप उनके पति की उम्र पूरी हो जाने के बाद भी यमराज ने पुन: जीवनदान दिया था। तबसे यह व्रत पृथ्वीलोक पर प्रचलित है और सुहागिन महिलाएं इस व्रत को धारण करती रही हैं। व्रत को लेकर दिनभर सड़कों पर रंग-बिरंगे परिधानों में सजी महिलाओं की भीड़ देखी गई। विदित हो कि वट सावित्री का पर्व हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन परंपरा अनुसार सुहागिनें स्त्री पुराने वट (बरगद) वृक्ष की पूजा कर उसे पीले धागे से बांधकर उसका फेरा लगाती हैं। पुराणों के अनुसार वट सावित्री के ही दिन सती ने यमराज से अपने पति के प्राण बचाकर लाए थे। वट सावित्री का त्यौहार सुहागिन स्त्रीयों के द्वारा काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। 

वट सावित्री के पर्व के लिए नगर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक महिलाओं में उत्साह रहा। गांव के प्राथमिक शाला के पास,  कई पुराने बरगद के पेड़ों के पास सुबह से महिलाओं ने पहुंचकर वट वृक्ष में कच्चे सूत को लपेटते हुए 12 बार परिक्रमा की अखंड सुहाग की कामना की। पारंपरिक व्रत को पूरे विधि विधान-लगन के साथ करने के साथ महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा की

कल्पलता सिंह ने बतलाया—क्या हैं व्रत का महत्व

अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेने वाली देवी सावित्री भारतीय संस्कृति में संकल्प और साहस का प्रतीक हैं> यमराज के सामने खड़े होने का साहस करने वाली सावित्री की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। सावित्री के दृढ़ संकल्प का ही उत्सव है वट सावित्री व्रत। इस व्रत की उत्तर भारत में बहुत मान्यता है,

इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग,पतिप्रेम एवं पतिव्रत धर्म की कथा का स्मरण करती हैं।यह व्रत स्त्रियों के लिए

सौभाग्यवर्धक,पापहारक,दुःखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है।जो स्त्रियां सावित्री व्रत करती हैं वे पुत्र-पौत्र-धन आदि पदार्थों को प्राप्त कर चिरकाल तक पृथ्वी पर सब सुख भोग कर पति के साथ ब्रह्मलोक को प्राप्त करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा,तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है एवं इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। इस कार्यक्रम में शामिल माताओं

लक्ष्मी पटेल, अनिता पटेल, परमिला नागेश, हेमकांती यादव, कल्प लता सिंह, कलमा दुर्गा, हेमकांती दुर्गा, द्रोपति नागेश, रामकुमारी नायक, त्रिवेणी चक्रधारी, दिव्या चक्रधारी, दुलारी चक्रधारी, जमुना ध्रुवा, एवं ग्रामीण अनूप पटेल, निरन नायक, जीवन लाल यादव, टिकनेश्वर यादव भजन राम यादव, रविराम यादव, हेमचंद नागेश रिखी राम बीसी, अन्य ग्रामीण उपस्थित रहे।

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Nil Kumar

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आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका

राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक

कमल राठौर साहिल शिवपुर मध्य प्रदेश

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स्वतंत्र लेखिका,स्वरचित मौलिक