कृति : गुजराती काव्य सम्पदा -नितिन भट्ट की कलम से....

  • Jun 03, 2023
  • Pushpanjali Today

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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा प्रकाशित, क्रांति कनाटे की 'गुजराती काव्य संपदा' पढ़ने का मौका माँग कर लिया। उत्सुकता यह जानने की थी कि नरसिंह महेता, दयाराम, गंगासती, दुला भाया काग और उमाशंकर जोशी जैसे कुल चौदह कवि अपनी एक सौ ग्यारह कविताओं के साथ हिन्दी में कैसे प्रतीत होते हैं, और यह भी कि क्रांति अपने इस दुस्साहस में सफल हुई है कि नहीं। गुजराती-हिन्दी के एक आम पाठक के तौर पर इस संचय को चाव से पढ़ा तो प्रसन्नता हुई क्योंकि दूसरी भाषाओं की रचनाओं के गुजराती अनुवाद ही सामने आते हैं जबकि यहाँ गुजराती की उम्दा रचनाएँ हिन्दी में उपलब्ध हैं, संतोष हुआ कि कवयित्री ने शानदार तरीके से रचनाधर्मिता को निभाया है। मूल कवि या कविता के प्रति किंचित भी अनादर न हो जाए इस प्रकार जिस हुनर से उन्होंने अनुवाद कर्म को अंजाम दिया है, वह अपने आप में एक मिसाल है। कविताओं की गेयता और लय को बरकरार रखने हेतु भी क्रांति जी निस्संदेह बधाई की पात्र हैं।

 संग्रह की कुछ कृतियाँ तो कालजयी हैं, जो शताब्दियों बाद भी गुजरात में गाई जाती हैं और पढ़ने-सुनने वालों को भावविभोर कर देती हैं। क्रांति ने इन रचनाओं को हिन्दी में उतारकर इनकी व्यापकता और प्रासंगिकता को तो नया आयाम दिया ही है; साथ ही इन्हें अमरत्व भी प्रदान किया है यथा- च्अखिल ब्रह्माण्ड में एक तू श्री हरिज् (नरसिंह महेता), च्ब्रज प्यारा रेज् (दयाराम) च्मेरु तो डोलेज्( गंगासती), च्एक ही दे चिंगारीज् (हरिहर भट्ट), च्पग मोहे धोने दो रघुराय जीज् (दुला भाया काग), च्राज! मोहे चढ़ा केसरिया रंगज् ( झवेरचंद मेघाणी)। सर्वमान्य है कि उर्दू के बाद ग़ज़ल लेखन में कोई भाषा आगे निकल गई है तो वह गुजराती है। संग्रह में शामिल चिनु मोदी और मनोज खंडेरिया दोनों ही गुजराती ग़ज़लों के दो बड़े नाम हैं, चिनु मोदी की ग़ज़ल च्धड़कने न देज् के शेरों में जो प्रयोग हुआ है वह अनुवाद में बखूबी ढला है। च्ज़रा-से सुख का ये तूफ़ान देखो/ग़ज़ल नाम का गाँव बसने न देज् या फिर च्किसी पल भी आती हुई मौत ये/ मुझे ढंग से सज-सँवरने न देज्। मनोज खंडेरिया की च्सब का संभव है, सत्य का विकल्प नहींज् जैसे प्रयोग परंपरागत उर्दू पदावलियों से बिलकुल अलग हैं। यहाँ दुष्यंत कुमार और सूर्यभानु गुप्त की सशक्त और जानदार ग़ज़लें बरबस याद आ जाती हैं। जयंत पाठक (हो, कोई आने से रोको वसंत को), हसित बूच (मैं अंग-अंग भीगूँ/ बरसे चाँदनी की बौछारज्) जगदीश जोशी (च्यह तो बीज से फूटी है डाल/कि पत्ते-पत्ते में प्रकटा पातालज्) गुजराती के लोकप्रिय गीत हैं। इनके साथ भारतीय कविता के आदरणीय हस्ताक्षर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त उमाशंकर जोशी तथा राजेन्द्र शाह की चुनिन्दा कविताओं के भी अनुवाद समाहित हैं। क्रान्ति ने महेन्द्रसिंह जाडेजा के च्एक हृदय से दूसरे हृदय तक पहुँचे वह कविताज् की तर्ज़ पर गुजराती हृदय से हिंदी हृदय तक पहुँचाई च्गुजराती काव्य संपदाज् अब च्हिन्दी काव्य संपदाज् बन गई है।

 प्रत्येक कवि का संक्षिप्त परिचय देकर और च्हेम से ब्रह्म तकज् शीर्षक के अंतर्गत गुजराती काव्य यात्रा की झलक पाठकों के समक्ष रखने से दोनों भाषाओं के पाठकों की रुचि तो बढ़ेगी ही, साहित्य के छात्रों को एक रेडीमेड शोध-प्रबंध भी प्राप्त होगा। दुखद है कि अनूदित एक भी कवि आज मौजूद नहीं है वरना अपनी रचनाओं को हिन्दी में पढ़कर वे सब भी फूले नहीं समाते और सोचते ये वाकई अनूदित हैं या मूलत: हिन्दी में लिखी गई हैं!च्गुजराती काव्य सम्पदाज् गुजराती और हिन्दी साहित्य की मूल्यवान धरोहर के रूप में हमें प्राप्त हुई है इस च्क्रांतिज्कारी कार्य हेतु क्रांति कनाटे और प्रकाशन हेतु उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की जितनी सराहना की जाए, कम है।     

समीक्षक: नितिन भट्ट, बी-2,नमन अपार्टमेंट, राठी अस्पताल लेन, जोधपुर चार रास्ता, सेटेलाइट, अहमदाबाद-380015.मो. 9099002939 nitinrbhatt@gmail.com

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Nil Kumar

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आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका

राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक

कमल राठौर साहिल शिवपुर मध्य प्रदेश

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आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका,स्वरचित मौलिक