शीर्षक - टमाटर की व्यथा

  • Jul 13, 2023
  • Pushpanjali Today

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जब मैं सस्ता था तो कूटकूटकर

चटनी बना दिया जाता था


ऊपर से मुझमें लाल मिर्च  

छिड़क दिया जाता था


तुम्हारे घर की फ्रिज और

टोकरी में लावारिस पड़ा रहता था


सड़ता ,गलता था मगर

मेरी फिक्र भला कौन करता था ?


जब से मेरे भाव बढ़े

लोग मेरा पता लगाते फिरते हैं 


मगर मुझे घर लाने की

हिम्मत लोग कहां करते हैं ?


निडर घूम रहा मैं बाजारों में

मुझे देख लोग अब डरते हैं


चर्चा बना हुआ हूं सुर्खियों में

मेरे संग सेल्फी लोग पसंद करते हैं 


बड़ा आदमी बना हूं जब से

दाम फलों के ही, मैं बिकता हूं


सब्जी की टुकनी से उठकर

मैं संग फलों के बैठता हूं


जब मैं सस्ता सरल कभी था

तुरंत काट दिया जाता था


देख लोग छूते नहीं बाजारों में

जिनको पहले कभी मैं भाता था


खट्टा भाई नीबू भी मेरा साथी है

रस निकाल लो खूब नीबू के तुम


अब आगे नीबू की ही बारी है

जन हित हेतु मेरा संदेश यह काफी है



प्रियंक खरे (सोज)

हिन्दी कवि

माधवगढ़ सतना मध्यप्रदेश

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Nil Kumar

Columnist

आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका

राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक

कमल राठौर साहिल शिवपुर मध्य प्रदेश

लेखक

आशी प्रतिभा दुबे

स्वतंत्र लेखिका,स्वरचित मौलिक